Tuesday 22 July 2014

प्रणय स्पर्श


























तेरी चाहत ने आज फिर से मुझे जगा दिया,
एहसास का दीप, फिर क्यूँ तूने जला दिया,
छुपा रखा था मैंने, खुद को एक ज़माने से,
आज तूने क्यों फिर मुझे रुला दिय…

तेरी चाहत ने आज फिर से मुझे जगा दिया,

स्थिर थी मैं, ठहरे हुए पानी कि तरह
पत्थर मार, क्यों इन लहरों को प्रवाह दिया,
क्यों फिर से मुझे, महसूस हुआ मेरा अस्तित्व ,
मैं - मैं भी हूँ, क्यों मुझको याद दिला दिया

तेरी चाहत ने आज फिर से मुझे जगा दिया,

सपना था, कि मुट्ठी में होगा अब आसमां,
ऐसी अतिश्योक्ति को क्यों फिर तूने हवा दिया,
तेरी फूंक ने चेहरे से, उड़ाया था जो ज़ुल्फ़ों को,
ऐसा वज्र क्यों मुझे पर आज गिरा दिया..

तेरी चाहत ने आज फिर से मुझे जगा दिया,

कल तक था तू इस मर्म का मेहमान
आज क्यों तूने इसेअपना घर बना दिया,
भ्रम था मुझे, मेरी अनम्यता  का ,
क्यों तूने मेरे भावों का बोध करा दिया,

उम्मीद का पैमाना आज फिर तूने छलका दिया,
तेरी चाहत ने आज फिर से मुझे जगा दिया,


Tuesday 15 July 2014

बारिश




रिमझिम बारिश की बूंदे 
जब तन को छू कर जाती है 
सुलगते हुए मन में 
ठंडी सी आग लगाती है 


रिमझिम बारिश की बूंदे

 जब अधरों को सहलाती है,
तेरे प्यार की आस भी 
मेरी प्यास बन जाती है 

ठंडी ठंडी पवन जब

 ज़ुल्फ़ें उड़ा कर जाती है
 तेरी वो आवाज़ कानों में 
गुंजन करके जाती है 

ठंडी ठंडी बूंदे जब 

बालों से रस टपकाती है 
न जाने फिर से दिल को क्यों 
तेरी याद सताती है। 

Tuesday 1 July 2014

कहीं खो गयी हूँ मैं

When you completely lose yourself, you find it once again somewhere, the lonely YOU.. nothing left other then regrets and incompleteness. Regrets of leaving behind everything.

A story of very ambitious, Career Oriented girl left many things behind.Lost herself in the journey of achieving her goal.


कहीं खो गयी हूँ मैं 

शायद सो गयी हूँ मैं
प्रेम भी है , सम्मान भी है,
मंज़िले भी है, मुकाम भी,
पर मैं - मैं नहीं

खोज रही , अब खुद को,
कुछ झूठे अफसानों में,
माप रही है दुनिया मुझको,
कुछ अनचाहे पैमानों में'

कहीं खो गयी हूँ मैं
शायद सो गयी हूँ मैं

चाहत न रही मन में
सिवाय खुद को पाने की
थोडा-सा समय ,
अब खुद के साथ बिताने की

हिम्मत न रही दिल में
कुछ और नया अपनाने की,
बनावटी इस दुनिया में,
कुछ साबित कर दिखाने की ,

भाग- दौड़ से भरी ज़िन्दगी,
जहाँ अपनों का कोई स्थान नहीं,
झूठी शान-ओ- शौकत में,
अब अपनों का कोई मान नहीं

भूल गयी हूँ, अच्छा सोना,
वो मस्ती से खुश होना,
मुस्कान तो रहती चेहरे पर
भूली हँसी से आखें धोना

सपने होते थे सिद्धि के
जब देखी न थी ऐसी दुनिया,
अब हो गया ज्ञान सत्य का ,
के ये सब तो है दिखाने को ,

ऐसे भी कुछ दिन होते थे,
जब लज्ज़त को होती थी रसना,
सोच समझ केर चलती अब तो,
भूल गयी सत कहना,

रिश्तों से प्रेम हैं अब भी,
खली फ़ोन पर जताने को,
उसमें भी गणित आगई
पैसों का हिसाब लगाने को,


खुली आँख से सपने देखे,
बार बार दिल मचलाने को,
जाने अब वो कहा खो गए,
कई अरमाँ नए दबाने को,


कही खो गयी हूँ मैं,
शायद सो गयी हूँ मैं,

प्रेम भी है , सम्मान भी है,
मंज़िले भी है, मुकाम भी,
पर मैं - मैं नहीं …