Monday 16 February 2015

कदम बढ़ते गए, और यादें साथ चलती गयी



कुछ इस तरह आपको महसूस किया की,
कदम बढ़ते गए, और यादें साथ चलती गयी

किताबों को छुआ तो महसूस हुआ वो अपनापन,
जिस से आपने बहुत कुछ सिखाया था हमें,
शब्द पढ़ते गए , कानों में आवाज़ पड़ती गयी
कदम बढ़ते गए, और यादें साथ चलती गयी

तकिये के पास पड़ा था चश्मा
दिखा तो, आँखों की देख ली निष्पक्षता
वो सफ़ेद धोती ,आपकी सरलता का आभास करा गयी
कदम बढ़ते गए, यादें साथ चलती गयी

आपके हाथों के लिखे कुछ पुर्ज़ों  से अवाक रह गयी
हाथों  की सिलवटों से, माथे की लकीरो तक का अनुभव
छीपा था इसमे, आपकी भावनाओं में भावुक हो गयी
कदम बढ़ते गए, और यादें साथ हो गयी

पत्तों की आवाज़ ने याद दिला  दिया,
हमको सींचा था, आपने किस स्नेह से
जैसे माली ने सींचा है अपनी बगिया को
बिना किसी संदेह से,
कदम बढ़ते गए, और यादें साथ चलती गयी

कोने में खड़ी वो लाठी ,
याद करा गयी कई बाते, मोटी हो या नाटी
कुछ किस्से और कहानियाँ, जो थी आपकी यादों में मेरी संगी-साथी
कदम बढ़ते गए, और यादें साथ चलती गयी

रास्ते में ठोकर लगी, एक कपड़े की गेंद मिली,
वही जो आपने बनाई थी, मेरे लिए
इतनी सहज की जरा भी चोट लगे,
आज वो भी ज़ख्म  कर गयी
कदम बढ़ाते  गये और यादें आँख भर गयी

सड़क के कोने का वो मंदिर, देखा वही एक पेड़,
जहाँ टहल कर बैठ जाया करते थे आप ..
आज उसकी छांव भी कही खो गयी
कदम बढ़ते  गये पर यादें साथ हो गयी

कुछ इस तरह आपको महसूस किया की,
कदम बढ़ते गए, और यादें साथ चलती गयी