गौरव के बखान
के आगे शब्दकोष भी न्यून है
फिर भी एक कशिश है, आप की खोज में,
फिर भी एक कशिश है, आप की खोज में,
मेरे प्रिय बाबा आपके चरणो में समर्पित मेरा एक छोटा सा प्रयास
कैसे इस दिल
को मनाऊँ, की आप अब नहीं
कैसे अब खुद
को समझाऊँ, की आप यहाँ नहीं,
छोटे-छोटे हाथों को आपने थामा था यूँ
इस दुनिया
को हमने जाना था यूँ
पढ़ाया-लिखाया,
हर वक़्त कुछ नया सिखाया
नए-नए सपने,
नईं चाह को जगाया
हर प्राणी
से प्रेम करना, अपने सिखाया,
उगते सूरज
से, ढलती शाम तक,
हर एक क्षण
का अवलोकन आपने बताया
कितनी खूबसूरत
ये है दुनिया, ये आपने दिखाया
छोटे-छोटे
हाथों में पेंसिल पकड़ना सिखाया
बड़े होते-होते,
गीता का ज्ञान भी बताया
हमारे सपनों
के साथ, अपनी उम्मीदों को लगाया
ऐसे अपने
हम-में, कुछ बनने का जज़्बा जगाया,
बचपन की कहानियाँ,
अब कौन सुनाएगा
अपनी जवानी
के किस्से, अब कौन बताएगा
याद आता है
वो हर पल, जो गुज़रा है आपके साथ
इतना ख्याल
हमारा, अब कौन रख पायेगा
ठहाकों से
भरी थी ज़िन्दगी, सुनी कर गए
खाली हाथ
हम, और आँखे भर गए
सर से हाथ
उठा कर क्यों चल दिए?
क्यों इतन
प्यार लुटा कर यूँ चल दिए?
छोड़ गए सबकुछ
, उस मुस्कान के सिवा
छोड़ गए सब,
प्यार और ज्ञान के सिवा
आखों का वो
तेज, वो सम्पूर्णता कहाँ,
अब हमारी
रचनाओं में, परिपूर्णता कहाँ
अब आया था
वक़्त, जब हमने ध्यान रखना था,
आपके हाथों
को थाम, अब हमने चलना था,
क्यों इतना
भी हमें , मौका न दिया
जब हमारी
बारी आई, तो ऐसे दगा किया??
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