Thursday, 7 February 2013

Teri mohobbat



कांपती ठण्ड मैं तेरे हाथों को सहलाती रही,

तेरे लिए दुनिया में बुरी कहलाती रही


जवाब जानती फिर भी सवाल करती,

तेरे आवाज़ से अपना दिल खुशहाल करती


जानकर अपनी जुल्फों को उलझाती,

तेरी उंगलियाँ उन्हें बार बार सुलझाती


अपनी चुनरी तुझ पर यूँ झटकती

तेरे मन को हर पल यूँही  भटकाती


तेरी बाजुओं ने मुझे झुलाया है बहुत 

गोदी मैं सर रख हमने भी तुझे सुलाया है बहुत  


 जब भी लिया था आगोश में 

कह गए थे सब पर  खामोश थे


 नाराज़ होती थी की अब मनाओगे 

आज तो खूब प्यार हम पर बरसाओगे 


तेरी छाया को अब भी चूमती हूँ 

उस वीरानी डगर पर अब भी घूमती हूँ  


तेरे इंतज़ार में दर अब भी तरसते है

 आखों से वो मोती अब भी बरसते है


लगता था एक दिन अपनाएगा

 नहीं पता था सिर्फ मीठी बातों से बहलायेगा 


मैंने भी अश्कों को बहाया है बहुत 

तेरी मुहोब्बत ने मुझे रुलाया है बहुत   









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