आज आया है सावन पर वैसा नहीं,
आज हुई है बारिश पर वैसी नहीं,
नाचे आज मोर पर वैसे नहीं,
खिल उठा है मौसम पर वैसा नहीं,
गुनगुना रही है हवा पर वैसी नहीं,
जैसे
होती थी मेरे बचपन में...
भीगा करते थे आंगन में, पेड़ों के साथ-साथ
कोयल से कूंकते थे, कोयल के साथ-साथ
चेहरे भी खिलते थे, फूलों के साथ-साथ
पत्ते भी लहराते थे, मेरे साथ- साथ
दौड़ पड़ते थे देखने को सात रंग आकाश
में,
चीख चीख कर आवाज़ देते सहेलियों की
तलाश में,
कनखियों से देखते थे सूरज के प्रकाश
में,
आज आया है सावन पर वैसा नहीं,
आज हुई है बारिश पर वैसी नहीं,
जैसी होती थी मेरे लड़कपन में,
बस्तों को बचाते खुद भीग जाते,
स्कूल से घर भीगते हुए आते,
जामुन के पेड़ों से जामुन लाते,
पडौसी के घर से फूल चुराते,
छुप-छुप कर देखते, कानों मैं खुसफुसते,
मम्मी के हाथ के पकौड़े खाते,
मक्का के दाने भी खूब भाते,
सर्दी होने पर मम्मी पापा चिल्लाते,
प्यार से फिर बाम से सहलाते,
तीजों पर मेहँदी से हाथ सजाते,
फिर जिज्जे के हाथ से हलवा-पूरी खाते
राखी पर भाई से खूब कमाते,
फिर सारे पैसे उसी पर लुटाते
आज आया है सावन पर वैसा नहीं,
आज हुई है बारिश पर वैसी नहीं,
अब तो है बस ऑफिस की बातें
शहर का शोर, गाड़ी की आवाज़े,
भीड़ मैं खुम हुई सारी बरसाते,
सावन के झूले और बचपन की यादे,
घर पहुँचते है सब, रात के आते,
थक कर पुरे चूर चूर हो जाते,
आज आया है सावन पैर वैसा नहीं,
आज हुई है बारिश पैर वैसी नहीं...
राजश्री शर्मा
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