माँ
तू बहुत याद आती है,
तवे
से उतरती रोटी हमें खिलाती है,
और
खुद ठंडा निवाला खाती है
माँ
तू बहुत याद आती है,
सोती
नहीं रातो को,
और
हमसे पहले उठ जाती है
थकी
हुई आँखों से भी,
सिलती कपड़े , बेटियों को सजाती है
माँ
तू बहुत याद आती है
अपने
सपनों को तोड़
हमें
नींद से जागती है,
और
हमारे सपनो को पूरा करने
में
अपनी
जी-जान लगाती है
न
जाने तेरी कितनी ख़्वाहिशें
सूली
पर चढ़ाती है,
फिर
हँसते हँसते हमसे कदम मिलाती है
माँ
तू बहुत याद आती है
छोटी
थी तब डरती थी
कहती
कुछ, कुछ करती थी
जब
तू गुस्से से लाल होती
थी,
अब
सहेली बन जाती है,
माँ
तू बहुत याद आती है
जब
तबियत ढीली होती है,
बस
आँखें सीली होती है,
दुखती
हुई रग् ,कोई बूझता नहीं,
तुझे
याद कर लूं और
कुछ सूझता नहीं
न
कोई दर, न मंज़िल मुझे
भाती है,
बस
तू ही तू ज़हन
में रह जाती है
माँ
तू बहुत याद आती है।
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