Thursday 14 June 2018

पीहर


मिलगई थोड़ी ठंडी छावं ,
जब रखे पीहर में पाँव
चढे थे मुझको महीनों से चाव,
अब लौट जाना है,

बाबुल का प्यार, माँ का दुलार
ममता की रोटी, आम का अचार
बहनों की बातें , शिकायतें हज़ार
चहल -पहल से भरा घरबार

कुल्फी की घंटी, बुढ़िया के बाल
बगीचे के झूले, बच्चो का प्यार
ढेरों खिलोने, पर नखरे हरबार
नाना के घर में इठलाते ये चार

अम्बिया पर बैठी कोयल की पुकार
पत्तो के बीच सरसराती बयार
जून की बारिश की ठंडी फुहार
मिट्टी की खुशबू, कागज़ की पतवार

जुड़े हुए है यहां दिल के तार
खींच लाये यहां, मुझे बारंबार
संजोली यादें और दो चार
अब लौट जाना है।

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