आखों में हम खूब काजल लगाते,
फिर उन आखों से तुम्हें डराते,
चहरे पर कभी लाली न लगते,
नहीं तो तुम प्यार हमें, कैसे कर पाते
कानों से बाली को रोज़ हटाते,
ताकि तुम उन्हें बार-बार पहनाते
हाथों की चूड़ियाँ , इतनी खनकाते
इस तरह तुम्हारा ध्यान , अपनी ओर खींच लाते
चेहरे को अश्कों से रोज़ नहलाते,
ताकि हमारे आसूं भी मोती कहलाते
अब तो बस यादों में खो जाते,
उस चादर में , सिमट कर सो हम जाते,
जो, तुम्हारी खुशबु से हमें अब भी महकाती है,
तुम साथ हो मेरे, ये एहसास कराती है ।
No comments:
Post a Comment